तेरे अहंकार में...
तेरे अहंकार में...
तेरे अहंकार में सिर्फ वो ही नहीं
पूरा संसार बिखरा पड़ा है..
जब भी सुनूँ तेरी हर बात सही है ..
मेरी सिसकी भरी रातें भी तुझे गंवार नहीं
उसूलों के दंभ हाँके क्यूं तू
जब उसपे चलने से कतराये यूं तू..
हर बार की तनाशाही..
जब भी सुनो इनकी बेपरवाही
जिम्मेदारी निभाये बहू ..
शाबासी ले जाये तू...
वह तेरी दुनियादारी ..
जिसे कुछ नहीं आता.. उसकी नाम पे सत्ता..
नारी को हर एक में हुनर बाज हो ..
फिर भी तेरे वाह की मोहताज हो..
एक ही करो बस तुम
स्त्री के जैसा उदार मन न पा सकोगे तुम
मिल्कियत की आस न प्यार की प्यास
वो तो हर लीला जाने कर्म की रास ..
जब इतना ही है तेरा प्रयास..
हर जनम में क्या करेगा खास
अहंकार से तेरी दुनिया आबाद
न मिलेगा वो जिन्हे अहसास..
एक कर्म दोनों को बांटे उसने
बटोर के लम्हे सजाये वो घर आंगन
महक जाती है जिंदगी भी हँसी सुनकर
तुझे तो वो भी नहीं भाता ...
आंगन की मिट्टी को तिलक बने देखें हैं ..
पर किसी कोठे पर जब सजती है
तो भी मिट के खुद दूसरों के लिये जीती है
हर बार वो एक जिंदगी ही कहलाती है
महज एक तेरे मैं को क्यों न भाती है
तेरे अहंकार में सिर्फ वो ही नहीं
पूरा संसार बिखरा पड़ा है..
