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Ratna Pandey

Drama Tragedy

5.0  

Ratna Pandey

Drama Tragedy

तारीख़

तारीख़

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553


किसी को हँसाती किसी को रुलाती,

किसी के लिए काला दिन बन जाती,

किसी को स्वर्णिम दिन की याद दिलाती,


जीवन मृत्यु का प्रमाणपत्र बन जाती,

आज वर्तमान कल इतिहास है बनना,

ऐसा एहसास दिलाती है तारीख़।


सुख और दुख अपने पन्नों पर अंकित कर जाती,

हर पल हमारे साथ में चलती,

इतिहास के हर पन्ने पर बसती है तारीख़,


गुज़र जाते हैं जो लम्हात,

वह तारीख़ों में कैद हैं हो जाते,

और इतिहास के पन्नों में हम,

उन्हें ताउम्र खोजते हैं रह जाते।


बदकिस्मत होते हैं वह,

जिनकी ज़िंदगी न्याय के मंदिर में है चली जाती,

तारीख़ों से भरी किताब तक़दीर उन्हें दे जाती,


किताब का हर पन्ना होता है कोरा,

हर पन्ने पर होता है सिर्फ़ तारीख़ का ही ब्यौरा,

फैसले की तारीख़ के इंतज़ार में,

ज़िंदगी छोटी पड़ जाती,


ज़िंदगी ना जाने कहाँ खो जाती,

किन्तु तारीख़ की अंतिम तारीख़ नहीं आ पाती।


तारीख़ें बदलती जाएँगी,

नहीं बदलेंगे हालात,

हर तारीख़ दिखाएगी यहाँ,

इन्सानों की औकात,


इतिहास है गवाह, तारीख़ों से भरा,

इन्सानों की हैवानियत का पुलिन्दा है बड़ा,

कौन सा ऐसा दर्द है,

जो तारीख़ों में नहीं है पला।


रोती होगी तारीख़ अपनी तक़दीर पर,

नहीं करती कोई भी गुनाह मैं,

फ़िर क्यों ताने हैं मेरी तक़दीर में,


नहीं काम है मेरा लहू बहाना,

ना ही इन्सानों को आपस में लड़ाना,

आतंकी बंदूक की आवाज़ों से सिमट जाती हूँ मैं,

अबला नारियों की चीखों से सहम जाती हूँ मैं,


विश्व युद्ध की नहीं हूँ मैं जिम्मेदार,

हिरोशिमा की बरबादी की मैं ही हूँ गवाह।


किसने किसका ख़ून बहाया,

मुझसे नहीं कोई छिप पाया,

किसने कब किया घोटाला,

मैंने सबको है पहचान लिया,


दर्ज़ है मेरे अस्तित्व में हर एक घटना,

नहीं भूल सकती मैं कुछ भी,

समझ लो तुम बस इतना।


हर रोज़ बदनाम होती हूँ मैं,

इन्सानों के हाथों रोज़ ठगी जाती हूँ मैं,

नज़र नहीं आता कहीं भी अंत मेरा,

मोक्ष चाहता है जहाँ से मन मेरा,


सदियों से कर रही हूँ मैं इंतज़ार,

कहाँ है मेरा सौभाग्य,

कभी तो ऐसा वक़्त आयेगा,

जब मेरा हर एक पन्ना खुशियों से भरा,

स्वर्णिम अक्षरों से लिखा जाएगा।




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