तारीखें गुम होती नहीं
तारीखें गुम होती नहीं
लिखना चाहा तुझे मैने मेरी नज़्मों में
न जाने क्यों कलम रुक गई लिखते -2
खयालों के तूफान जो आकर घेरते हैं मुझे
धुंधली पड़ जाती हैं नजरें आँखें मलते -2
मेरी चाहत का तुझे कोई अंदाजा न था
मेरी शोखियों का अंदाज तेरा नसीब न था
कुचले गए थे मेरे एहसास बड़ी बेदर्दी से
और आज तेरे पांव रुक गए यकायक चलते -2
बीत जाती हैं तारीखें गुम होती नहीं कभी
उन बीते लम्हों का कुछ तो हिसाब होगा
जब ख़ता थी तुम्हारी और सजा मिली हमें
कैसे करें उसको बयां रुक जाती ज़ुबान कहते -2
शुमार हैं वे सारे लम्हात मेरी इबादतों में
जब तेरी मौजूदगी में, मैं रुसवा होती थी
जो मैं रूठती या रोती हंगामे आग पकड़ते थे
धुल गए अब वे एहसास आंसुओं में बहते -2
बेफिक्र हूं अब मैं दिल को सहेज लिया मैंने
अब न गम -ए -मोहब्बत है न कोई रुसवाई
क्यों फिक्र करूं तेरी और फिर गुलाम हो जाऊं
अब अक्ल वजूद पा गई जुल्मों को सहते-2.....

