सवाल
सवाल
हैरान परेशान इस दुनिया से अनजान
अपने सवालो से चूर
हो उनके जवाबो से दूर
ढूंढ रही थी एक शख़्स वो
जिसपे करती थी ऐतबार
नादानियों में अपनी
कर बैठी उससे सवाल
क्या रिश्ता है हमारा?
क्या होगा उसका हाल?
डरी सहमी वो सवाल कर
घर के कोने में जा बैठी
कश्मकश से घिरी आत्म मँथन में फसी
सच्चाई से होकर दूर
अपने हालातो से मजबूर
सोच रही थी वो
कही हो न जाए वो दूर
कुछ वक्त उसने रोका खुद को
फिर मासुमियत से वही सवाल किया
जाना तुमने तो जवाब नही दिया ?
करना था इंतेज़ार वो कर बैठी तकरार
सोच में डूबी आगे क्या होगा अब यार
कभी वो समझती खुद को
कभी युही वो रो जाती
गलती न हुई हो पूछ
वो खुद ही बेचैन हो जाती
इंतेज़ार करना था मुश्किल
पर भवनों में बंधी वो
खुद से कब तक सच छुपाती!