स्वाभिमानी केसरिया पगड़ी
स्वाभिमानी केसरिया पगड़ी
भूमिका- ऐतिहासिक कहानी जिसमें अकबर मेवाड़ में
कब्जा जमाने के लिए महाराणा प्रताप को पत्र लिखता है।
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कि चिर कालीन भारत भू पर मुगलों का शासन
काला सा काल , धूमिल सा प्रशासन
इसी समय में हिंदुस्तान में अकबर शासन करता था
शासन क्या वह कुछ क्रूरता सा धरता था,
उसी समय वस्तु विनिमय व्यापार का बड़ा प्रचलन था,
विपत्ति यह अकबर की व्यापार में मेवाड़ बीच में अडता था,
फिर क्या गैर प्रांत में लेन- देन ना हो पाए,
ना यहां कोई आए वहां कोई जाए
ऐसा दृश्य हुआ दिल्ली खाली हो जाए
फिर अकबर मन ही मन सकुचाए
जब प्रगति नहीं तो क्या शासन चलाए।
फिर अकबर के मन में आया मेवाड़ में खत भेजूं,
लिखूं उसमें व्यथा मन की और उसे सहेजू
इसी सहारे से राणा को अपनी ओर खींचू
चलो स्वाभिमान के पौधे को लालच से सैंचू,
तो पहला खत अकबर ने भेजा -
राणा मेवाड़ हमें दे दो
दुश्मनी की सीमा भेदो
कुछ समय बाद तुम हमारे खास बन जाना
और कोई तकलीफ हो तो हम से कह दो
राणा मेवाड़ हमें दे दो
आखिर में सलाह हम से लेना
मेवाड़ी मिट्टी सल्तनत का गहना
कसम खुदा की जो मांगो वही देंगे
तुम चाहो तो अभी आधा हिंदुस्तान तुम्हारे नाम कर देंगे
इतना होने के बाद,
बात समझने की यही की प्रगति मोह से रुकी नहीं
सच्चाई तो यही केसरिया पगड़ी झुकी नहीं।