हमारे सुरक्षा कवच
हमारे सुरक्षा कवच
निरंकुशता अंदर हो या बाहर,
अंकुश में रखते हैं।
हर पल प्रहरी बन,
सजग रहते हैं।
अपनी सामर्थ्य का,
कण-कण जगाते हैं।
हताशा में भी,
आशा की किरण दिखाते हैं।
आँसुओं को सहेजकर,
अपनी शक्ति बनाते हैं।
अपने लक्ष्य को सुनिश्चित कर,
चक्रव्यूह बनाते हैं।
गति नहीं प्रगति लाते हैं,
सबकी सुरक्षा सुनिश्चित कर,
देश के विकास को
बहुआयामी बनाते हैं।
विलग है सबसे,
हमारे सुरक्षा कवच।
सबके जीने का
मक़सद बनाते हैं।
हर बढ़ते तूफान के लिए,
देश की ढाल बन जातें हैं ।
हर उठते सैलाब के लिए,
बाँध बन जाते हैं ।
जयहिन्द