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Archana Saxena

Tragedy

4.5  

Archana Saxena

Tragedy

सुबह कभी तो आयेगी

सुबह कभी तो आयेगी

1 min
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ये कैसी विपदा आन पड़ी है धरती पर

रोते हैं जन जन घर घर में अपने खोकर

एक वायरस ने जीना दूभर कर डाला है

कितना को जीते जी भी मार ही डाला है

कब कैसे टलेगा संकट कौन बतायेगा?

तारणहार कोई क्या धरती पर आयेगा?

किस तरह छँटेगा अँधियारा कुछ पता नहीं

कब निकलेगी आशा की किरण कोई जाने नहीं

जो असमय मौत की गोद में जाकर बैठ गये

संसार से दाना पानी अपना समेट गये

परिजन उनके रोते हैं आँसू पोंछे कौन?

अंतिम विदा उनको कर न सके वो हो गये मौन

भगवन आत्मा को उनकी शांति तो दे देना

जो पीछे रह गये छूट उन्हें भी शक्ति देना

इस दुख को हम सब और अब कितना झेल पायें ?

ईश्वर अब रोक लो प्रलय अब नहीं सह पायें

फिर से हो अब खुशहाल धरा का जनजीवन 

फिर मुस्कायें बच्चे बूढ़े स्वस्थ होवे तन मन

इस रात की सुबह कभी तो जरूर ही आयेगी

मन में रक्खो विश्वास बदली छँट जायेगी !


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