नील गगन आकाश
नील गगन आकाश
नभ छू लूँ
कर लूँ दुनिया मुठ्ठी में
यूँ कह दूँ
अब हूँ मैं ही मैं।
सबसे आगे
रुपयों के ढे़र पे।
हर दीवार से
उठा ऊँचा मैं।
न फिक्र कोई
घर, परिवार, बच्चों की।
न चिंता कोई
रिश्ते नाते अपनों की।
वक़्त का
गुलाम सा बना मैं।
हर चीज़ को
पीछे छोड़ चला मैं।
भागा भागा सा
पैसों की दुनिया में।
पड़ गया अकेला ही
सपनों की दुनिया में।
प्रेम छूटा,
छूटा सब संसार।
आज मैं तत्पर
ले के धन का अंबार।
आज मैं अकेला
नील गगन आकाश।