सुबह का भुला
सुबह का भुला
सुबह का भुला
लौट आता है अक्सर,
देर शाम तक बोझिल मन से,
महत्वकांक्षा को रास्ते में छोड़कर,
मुश्किल लगता है तन्हा होकर,
ख्वाहिशों का बोझ उठाकर चलना,
गलतियों से बचना, गिरने से पहले संभलना,
नियति मानकर सब कुछ भूलने के बाद,
वापस लौटकर मन को
मिलती है सुकून की अनुभूति।