सुंदरता को देख तुम्हारी दर्पण
सुंदरता को देख तुम्हारी दर्पण
सुंदरता को देख तुम्हारी दर्पण का मन डोल रहा है
चंदन तरु पर विषधर अपना जैसे फन खोल रहा है
अभिलाषा लेकर मिलने की रात कट रही आँखों में
शब्द सलोने निकल रहे है हरदम उनकी बातों में
भोर के पहले बार बार क्यों दिल अपना टटोल रहा है
सुंदरता को देख तुम्हारी...
व्यस्तता ऐसी भी क्या एक बार भी मिलने आ न सको
साथ बैठकर कुछ पल तुम दो गीत प्रीत के गा न सको
मधुर प्रेम के रिश्तों को क्यों आडम्बर में तोल रहा है
सुंदरता को देख तुम्हारी...