सच की राह पे चलते रहते
सच की राह पे चलते रहते
सच की राह पे चलते रहते नित सूरज का ताप लिए खुद कांधों पर धरे हुए हम औरों का अभिशाप लिए जीवन-
मृत्यु के बंधन हम खुद ही कैसे खोल सकेंगे सत्य न्याय के निर्णय को हम झूठा कैसे बोल सकेंगे झूठे वादे झूठी
आशा लेकर जीते है संताप लिए सच की राह पे चलते रहते नित सूरज का ताप लिए स्वप्न अधूरे पूरे होंगे धैर्य
धरेंगे कब तक हम मृग जैसे ही भटक रहे है कस्तूरी के लिए कदम आशाओं के गीत गा रहे अब भी हम विलाप
लिए सच की राह पे चलते रहते नित सूरज का ताप लिए।