सतरंगी सपने
सतरंगी सपने
निज नैनों में भर कर देखे
कुछ सतरंगी सपने रतनारे।
कुछ सपन सलोने साजन के
देखें दिन रैन नयन कजरारे।
देख दर्पण में मुखड़ा बार- बार
जब लाज स्वयं से आ जाती है।
पाणिग्रहण की बेला, हाथों में
मेहंदी साजन की रच जाती है।
अब सतरंगी सपनों में बसता है
प्रियतम साजन जी का गांव।
स्वयं शूल फूल बनकर हंसता है
मुस्कती धूप बनकर शीतल छांव।
पथ पीहर का लंबा हो जाता है
प्रिय आंगन मन रच बस जाता है।
मन की कोयल मल्हार सुनाती है
छवि पिय की मन में बस जाती है।