वह एक ख़त
वह एक ख़त
बिखर गई थी भीनी सी एक खुशबू
जीवंत हो उठे कुछ विस्मृत अद्वितीय पल
पहुंच गया था मन वापस एहसासों में
महसूस कर रही थी फिर
वह प्यार , लाड़ ,दुलार , पुचकार
थाम कर अपने हाथों में उस एक
अलमारी में रखे पुराने खत को
कितना कुछ गुजर गया आंखों के आगे से
जी लिया फिर से अपने बचपन को
एक एक लम्हा.... जैसे बस अभी की ही बात हो
बैठी थी गोद में सर रखकर
महसूस कर रही थी कपोलों पर
फिसलता हुआ वह ममतामई स्पर्श।
भीग रहा था उस प्यार में मेरा सर्वांग
प्रफुल्लित थी..... प्रमुदित थी.... खो गई थी
लगा था पकड़कर उस
अलमारी में रखे पुराने खत को
जैसे भर लिया हो अंक में
मुझे मेरी माँ ने।
