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Maittri mehrotra

Others

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प्रेम और स्पर्श

प्रेम और स्पर्श

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प्रथम प्रेम और स्पर्श पहचाना

आंखें बंद किए मां की गोदी में

पय प्रेम सुधा रस पान किया

स्तन को स्पर्श किया मुख से ।


वह अमृत पय की मृदु बूंदे थी

तन में जीवन संचार कराती थी

वह स्नेहिल स्पर्श उंगलियों का

जो पल-पल माथा सहलाती थी।


जो बड़ी हुई तो पांवों को

धरणी का स्पर्श कराया था

बड़े प्रेम से पकड़ के उंगली

मां ने चलना सीखलाया था।


फिर दंत पंक्ति मुंह में जन्मी 

प्रेम से मां ने हृदय लगाया था

जीह्वा ने स्पर्श किया स्वाद का

चख मिट्टी भी मन हर्षाया था।


बोलना सीखा तो मधुर प्रेम से

मां ने पहला सबक पढ़ाया था

लेखनी का स्पर्श करा हाथों को

मुझको अक्षर ज्ञान कराया था।


किशोर वया नासमझ थी मैं

माँ ने प्रेम का अर्थ बताया था

क्या अच्छा क्या बुरा बता कर

माँ ने स्पर्श भेद समझाया था।


जीवन पथ फिर गतिमान हुआ

मां ने जीवन साथी से मिला दिया

प्रेम और स्नेह स्पर्श ने पति के

गौरव नारीत्व का बढ़ा दिया।


पुनः लौट फिर आया बचपन

अब मेरे आंचल की छांव में

आह्लादित मन मुदित प्रेम में

छनकी थी पैजनियां पांव में।


स्पर्श और प्रेम का चक्र

अनवरत चलता जाता है

प्रेम और स्पर्श की गाथा

बस पुनः पुनः दोहराता है।



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