मजदूर हूं मजबूर नहीं
मजदूर हूं मजबूर नहीं
कैसे कहूं, मजदूर हूं मजबूर नहीं
हर वक्त झेलता मार गरीबी की
न दो वक्त की रोटी का ठिकाना
कहने में शर्म कैसी, बेरहम जमाना।
शानदार जिंदगी मेरा सपना है पुराना
पर्याय हूं श्रम का, हूँ फटेहाल सयाना
लाचारी से ख्वाहिशों की प्यास बुझाना
झेलता हूँ बेबसी मैं न आंसू बहाना।।
नमक खाया है जो, वो कर्ज चुकाना
न हारूँ हालातों से, मुझे फर्ज निभाना
न डिगता परिश्रम से, न करता बहाना
प्रभु मेरे कभी न, मेरा ईमान झुकाना।।
है मेरे लिए सब अपने, कोई गैर नहीं
हूँ ताकत असीमित, किसी से बैर नहीं
पर हूँ मैं लाचार इतना, पास कौड़ी नहीं
कैसे कहूं हुजूर मजदूर हूं मजबूर नहीं।।