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Maittri mehrotra

Abstract

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Maittri mehrotra

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टूटती उम्मीदों की उम्मीद

टूटती उम्मीदों की उम्मीद

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मानव की विकृति ने वैश्विक महामारी का,

बड़ा भयंकर क्रूर खेल एक ऐसा खेला,

विषाक्त हो गए अनमोल जीवन अनेक,

छा गया गहन तिमिर लगा दुखों का मेला।


सांस मध्यम हो चली थी टूटती आशा की डोर,

पसरे इस अंधकार का था न कोई ओर छोर,

छटपटाहट हर तरफ थी खौंफ का पहरा लगा,

टूटती उम्मीदों की उम्मीद, ऐसा था लग रहा।


अंतःकरण से फिर प्रार्थना के स्वर उभरने लगे

हारे हुए मन में नव स्फूर्ति ,ऊर्जा फिर भरने लगे

प्रतिष्ठित फिर से प्राण होने लगे विश्वास के

सकारात्मकता को फिर नए आयाम मिलने लगे।


समय यह कठिन है बीत ही जाएगा

तम निशा के गर्भ से नई भोर फिर लाएगा

शुभ्र धवल प्रकाश का फैलेगा जीवन में उजास

जनजीवन सामान्य होगा सफल होंगे सतप्रयास।


टूटती उम्मीदों की उम्मीद का संबल बनकर

आत्मविश्वास की मजबूत डोरी से बंध कर

 समय की गर्म हवाओं का रुख बदलना होगा

 तू मनुष्य है ! हार मत ! तुझको चलना होगा।


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