स्त्री नहीं इंसान भी हैं
स्त्री नहीं इंसान भी हैं
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हम स्त्रियों का अस्तित्व,
इस रूढ़िवादी समाज में
'तुच्छ' के सिवाय कुछ भी नहीं।
सदा अपने स्वार्थ के लिए हमें उपयोग करते हैं,
जब चाहे हमे देवी बना कर
हमारी पूजा करते हैं,
कभी अपना सर
हमारे पैरों में रख देते हैं,
अपने हिसाब से हमारे लिए
नित नए नियम गढ़ देते हैं।
कभी बदनीयत से हमारे
अरमानों को रौंद देते हैं,
अपनी वासना में
हमारे जिस्मों को नोच देते हैं,
हमारी किस्मत का लेखा जोखा
खुद ही तय कर लिख देते हैं,
हमे इंसान नहीं भोग्या बना कर रख देते हैं।
पर अब, इस तिलिस्म से हम आज़ाद है,
अपनी किस्मत खुद लिखने को बेताब हैं,
इस कुत्सित समाज
इसके कुकृत मानसिकता को,
इसके बेढंग, बेदर्द नियमों को,
इसके खून से सने हवस के पंजों को,
इसके बनाए कुरीतियों के पिंजरों को,
तोड़ कर हम घरों से निकलेंगे,
जो भोगा हमने सदियों से,
वो दर्द, शोषण,अत्याचार और भेदभाव
अब हम नहीं सहेंगे,
हौसले और हिम्मत से
देकर एक दूसरे का साथ,
एक नया इतिहास हम लिखेंगे।
ये देह सिर्फ स्त्री नहीं
एक इंसान भी है,
उस ईश्वर कृति का वरदान है,
इसका खोया गौरव
अब हम हक से लेंगे,
समाज में इसको भी
इंसानों के रूप में जगह देंगे।