सपनों के सौदागर
सपनों के सौदागर
लो फिर आ गये
उजाला बेचने वाले सौदागर
लगायेंगे हाट
सजायेंगे दुकाने
नमक के पहाड़ों परफिर बनायेंगे
जज्बाती महल
बांटेंगे खुशियों की सौगातें
नहीं रहेगा इस धरा पर अब
कोई दुःख-दारिद्रî
नहीं रहेगी कोई अपूरित मनोकामना
हर इच्छा पूरेंगे मन की
आपके गले की सौगंध खाकर
उजाले के सौदागर !
नीच का शनी
आठवें घर में घात लगाए राहू
दिनमान के फेर से
चौथे में आ बैठा मंगल
और वक्री होकर
साधक को नचाते गुरु
सबको शांत कर देंगे ये मठाधीश
कोई नारी नहीं बुढाएगी अब
कोई ना रहेगी कुरूप
सबको षोडशी बना देंगे
इनके एकांतसेवी मंत्र
और माधवी-सा अखंड कौमार्य
कायम रहेगा सर्वदा
इनकी नजर-कृपा से ।
मांग लो !
मांग लो अभी तो
अपने अरमानों के देखे-अनदेखे
कौनों में छिपी
चाहतों की पूर्ति
पूर्वजन्म के पुण्यों का ही परिणाम है
कि ऐसी साधक-पुण्यात्माएं
सर्वस्व लुटाने को तैयार खड़ी है
कामनाओं की देहरी पर
दस्तक देती
देखो !
भीड़ लग गई हैंउस गली तक
बाबा
दो-तीन दिन बाद तक का
वक्त देने लगे हैं
भक्तों को,
याचक
एक-दूसरे पर गिरने-पड़ने लगे हैं
रत्ती-भर जगह नहीं
पर चिंता न करो
बाबा बड़े दयालु है
निराश नहीं करते किसी को।
डोर-स्टेप सर्विस के अलावा
अलसुबह
या रात के दूसरे-तीसरे पहर भी
सेवा को आतुर मिलेंगे
महिला-भक्तों की
सूनी कोख से द्रवित बाबा
शहर के
उस एकांत-नीरव उजाड़ में
अपने तीन तालों वाले
‘आश्रम’ में।
बेरोजगार के लिए
रोजगार
पढने वाली बालाओं के लिए
मखमली किले
निर्धन के लिए
धन
सूनी कलपती कोख के लिए
बच्चा
दुकान के लिए
ग्राहक
साहित्य के लिए
पाठक
लेखक के लिए
पुरस्कार
बिन ब्याहों के लिए
लड़के-लड़कियां
नेताओं के लिए
पद
पार्टी के लिए
सत्ता
किरायेदार के लिए
स्वयं का मकान
नाम की भूख-शांति के लिए
अखबार
कितना कुछ है
सौदागरों के पास
बस नहीं है
तो स्वयं के लिए
रोटी-जुगाड़ का
कोई ईमानदार नुस्खा
बेटे के लिए
रुजगार का मंत्र
कर्मकांडों
और पाखंडो से
गले तक ऊब कर
घर छोड़ जा चुकी बीवी के
घर-वापसी का उपाय
जो न संवार पाया
स्वयं का जीवन
वह सौ रुपये में
खुले आम
सपनों की
‘खुल जा सिमसिम’
डिबिया बेच रहा है
जनता
देख-समझ रही है
फिर भी
चरण-रज सिर लगाती
नहीं अघाती।
