सपनों का सौदागर
सपनों का सौदागर
सपनों में ही बेच दिया सपना दिखाकर,
अब किसे जाकर बताये हम अपना जिगर।
भूल जाते हैं सब अपनी मंजिल और डगर,
जब देखते हैं अचरज से हम ऐसा हुनर।
रिसते रिसते जख्म बन गए हैं नासूर,
अब तो दवा भी ना करती कोई असर।
क्या खत्म होगा ख्वाहिशों का कारवाँ,
यह खुशनुमा भटकता हैं मुसाफिर
दर-दर की ठोकरें खाकर।
कैसे जिये जिंदगी आप ही बताओ हमें,
सपनों के सौदागर ने यह कैसा दिया जहर।
किससे करे गिले-शिकवे कहाँ जाए हम,
दिया जिसने दुख-दर्द वही है अब बेखबर।
काँटो से भर गए हैं रास्ते
चलना मुश्किल ही नहीं नामुमकिन
लगता है खेल नही है जिंदगी का सफर।
कैसी छड़ी थी जादुई कारवाँ से भटक गए,
रास्तों पर उन्हीं अब क्यों टिकी है नजर।
सत्ता के आगे बताओ कौन है सयाना,
हर एक इंसान दिखता है परेशान बेसबर।
झूठे वादों पर खड़ी है इमारत उनकी,
कागजी खुशामद में लगा है सारा कुनबा मगर।
यह माना शोले भड़काने में आपकी हैं महारत,
खानपान जातिधर्म पर कितने लगाए आपने पहरे मगर।
बुझा दो इस नफरत की चिंगारी को,
वरना लपट से बच ना पायेगा कहर।
तमन्ना बस इतनी सी छोटी सी आरजू,
वक्त चल रहा है बुरा, यह भी ढल जाए सहर।
इन ऊँच नीच, जाती पाती के किरचों से
लहूलुहान हो गये हैं पाँव
आग की लपटों में जो हो रहा धुँआ-धुँआ,
वह अपनों का ही था जिगर।
अभिव्यक्तियों पर पाबंदियां ना लगाओ,
सच बयां करने वालों की नक्सलवादी नहीं होती लहर।
आप गर लाजवाब हो तो
जमाना जवाब क्यों माँगता है,
अँधेरो के ख़ौफ़नाक मंज़र से,
मन की बात उठाता है हर रिहायशी अगर।
गुलशन में रौनक आती हैं रंगबिरंगे फूलों से,
सिर्फ एक फूल के महकने से
गुलशन गुलजार नहीं होता शजर।
