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प्रीति प्रभा

Abstract Inspirational

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प्रीति प्रभा

Abstract Inspirational

सफ़र

सफ़र

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अपने पैरों पर चलकर देखते है

हवा का रुख़ बदलकर देखते है


ज़िन्दगी उसके नियमों पर टिकी थी

हम अब कायदे बदलकर देखते है


मेरी उम्मीदें चार दीवारों में क़ैद कल तक थी

खुली हवा में अब बहकर देखते है


सफ़र को छोड़ना आसान नहीं था

ज़रा गिरकर संभलकर देखते है


दायरे मजबूरी के बड़े उलझे हुए थे

पराए उन अंधेरों से निकलकर देखते है


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