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प्रीति प्रभा

Abstract

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प्रीति प्रभा

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अनजान रास्ते

अनजान रास्ते

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ये दुनिया है पागल खाना

हंँसी ख़ुशी से दिन बिताना


तेरी हर एक चाल को भाँपे

खिड़की पर पर्दे सजाना


दख़ल अंदाजी करेगा ये ज़माना

उन से दिल के राज़ सदा छुपाना


अनजान रास्ते है यहांँ जीवन के सभी

फ़िर भी मुस्कुरा कर है हमें चलते जाना


सभी को प्यार पैसों से है यहांँ

बहीखाता ना तुम किसी को दिखाना


कर लो जीते जी कुछ अच्छा काम

मरने के बाद सब यहीं है रह जाना।


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