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yogita singh

Tragedy

4  

yogita singh

Tragedy

सफ़र लेखक बनने का

सफ़र लेखक बनने का

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सफर कुछ यूं शुरू हुआ था 

देख कर उनको मेरा दिल खिल उठा था

मिली थी निगाहें क्या खूबसूरत समां था

दोस्तों के साथ चाय की टपरी पर खड़ा था 

उसकी बातों में एक अलग सा नशा था 

आते जाते कॉलेज से हर रोज वह दिखता था 

अगर ना दिखे तो मुझे सुकून मिलता था।

  

 एक दिन मैं मैंने जाकर उससे बोला 

 करनी है तुमसे दोस्ती पहचान बताओ थोड़ा

 हडबडाते हुए देखा उसने मुंह से कुछ ना बोला

 ऐसे देखने में लगता था वह बड़ा भोला।

  

 खैर जैसे-तैसे पहचान हुई

 हमारी दोस्ती की एक नई शुरुआत हुई 

 बातें करते-करते मैं उससे उस में खो जाती थी 

 कुछ सच्ची कुछ झूठी बातें बताती थी।


 अब हमारी दोस्ती कुछ यूं बढ़ने लगी थी

 दोस्ती तो थी पर अब मैं प्यार करने लगी थी

 मैं चाहती थी उसे बताना अपने दिल का हाल सुनाना।

  

 फिर उसने मुझे ये बताया

 कि उसकी पहली मोहब्बत का फोन है आया

 वह अपने किए पर पछता रही है

 वो इसकी जिंदगी में वापस आ रही है।

  

उसके चेहरे की चमक देखकर मैं कुछ बोल ना पाई 

मैंने उससे खुश रहने की दी बधाई

दिल में बातों का तूफान लिए

लौट गई मैं अपने सारे अरमान लिए। 


 स्याही के सहारे मैंने उकेरे अपने जज्बात 

 लिखने का सिलसिला कुछ यूं शुरू हुआ उस रात 

 तब से मिलता है सुकून जज्बातों को अल्फाजों में पिरो कर 

 कुछ इस तरह शुरू हुआ मेरा लेखक बनने का सफर।


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