एक अजन्मी बच्ची की पुकार
एक अजन्मी बच्ची की पुकार
मांँ, आठ महीने बीत गए
अब मेरे आने का समय आ गया,
पर मुझे डर लग रहा है मांँ
सुना है तुम्हारी दुनिया में
मानव नहीं दानव रहते हैं,
जो बच्चियों को नोच-नोचकर खाते हैं,
बताओ न मांँ,
क्या सच में तुम्हारी दुनिया में
मानव नहीं क्रूर दानव रहते हैं
मुझे डर लग रहा है मांँ
मेरे आने के बाद,
क्या मेरा भी बलात्कार होगा ?
क्या मुझे भी न्याय के
कटघरें में खड़ा होना पड़ेगा ?
क्या मुझसे भी सवाल पूछे जाएंगे ?
क्या मुझ पर भी उंगलियां उठेगी ?
क्या मुझे भी अपवित्र या
चरित्रहीन कहकर धिक्कारा जाएगा ?
ऐसे ही अनगिनत सवाल है
तो बताओ न माँ,
कैसे टिक पाऊंँगी मैं
इन दरिंदों की दुनियां में ?
मुझे डर लग रहा है मांँ
सुना है तुम्हारी दुनिया में कोई रिश्ता,
नहीं विश्वास के काबिल
सुनकर सिसकती है मेरी सांसें
और धड़कता है मेरा दिल,
कुछ कहो न माँ,
क्या मेरे नन्हे-नन्हे कदम
उनके मन में हिलोरें पैदा करेगी ?
क्या मेरे पैंटी का रंग उनके
तन में सिहरन ला देगी ?
क्या मेरे उठते स्तन के उभार को
देखकर वे अपना आपा खो देंगे ?
तो बताओ न माँ,
कैसे जान पाऊंँगी मैं उन
राक्षसों के छिपे इरादों को ?
हे माँ !
मुझे नहीं आनी, पशुओं और दानवों से
भरी तुम्हारी इस दुनिया में,
मुझे अपनी कोख रूपी दुनिया में ही रहने दे मांँ,
जहां न बलात्कार होगा,
न मैं जलाई जाऊंँगी,
न पुरुषों की अदालत होगी,
न ही कोई सवाल होगा,
वहाँ होगी तो सिर्फ तुम्हारी ममता
और मुझे उसी ममता की छांँव में पलने दे माँ
मुझे अजन्मा ही रहने दे माँ,
मुझे अजन्मा ही रहने दे।
