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JYOTI PRASAD

Tragedy

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JYOTI PRASAD

Tragedy

एक अजन्मी बच्ची की पुकार

एक अजन्मी बच्ची की पुकार

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मांँ, आठ महीने बीत गए

अब मेरे आने का समय आ गया,

पर मुझे डर लग रहा है मांँ

सुना है तुम्हारी दुनिया में

मानव नहीं दानव रहते हैं,

जो बच्चियों को नोच-नोचकर खाते हैं,


बताओ न मांँ,

क्या सच में तुम्हारी दुनिया में

मानव नहीं क्रूर दानव रहते हैं

मुझे डर लग रहा है मांँ

मेरे आने के बाद,

क्या मेरा भी बलात्कार होगा ?


क्या मुझे भी न्याय के

कटघरें में खड़ा होना पड़ेगा ?

क्या मुझसे भी सवाल पूछे जाएंगे ?

क्या मुझ पर भी उंगलियां उठेगी ?

क्या मुझे भी अपवित्र या

चरित्रहीन कहकर धिक्कारा जाएगा ?


ऐसे ही अनगिनत सवाल है

तो बताओ न माँ,

कैसे टिक पाऊंँगी मैं

इन दरिंदों की दुनियां में ?


मुझे डर लग रहा है मांँ

सुना है तुम्हारी दुनिया में कोई रिश्ता,

नहीं विश्वास के काबिल

सुनकर सिसकती है मेरी सांसें

और धड़कता है मेरा दिल,


कुछ कहो न माँ,

क्या मेरे नन्हे-नन्हे कदम

उनके मन में हिलोरें पैदा करेगी ?

क्या मेरे पैंटी का रंग उनके

तन में सिहरन ला देगी ?


क्या मेरे उठते स्तन के उभार को

देखकर वे अपना आपा खो देंगे ?

तो बताओ न माँ,

कैसे जान पाऊंँगी मैं उन

राक्षसों के छिपे इरादों को ?

हे माँ !


मुझे नहीं आनी, पशुओं और दानवों से

भरी तुम्हारी इस दुनिया में,

मुझे अपनी कोख रूपी दुनिया में ही रहने दे मांँ,

जहां न बलात्कार होगा,

न मैं जलाई जाऊंँगी,


न पुरुषों की अदालत होगी,

न ही कोई सवाल होगा,

वहाँ होगी तो सिर्फ तुम्हारी ममता

और मुझे उसी ममता की छांँव में पलने दे माँ


मुझे अजन्मा ही रहने दे माँ,

मुझे अजन्मा ही रहने दे।


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