किसने सोचा था
किसने सोचा था
किसने सोचा था रात भर रौशनी में चमकते,
लोगों की भींड़ से दमकते बड़े-बड़े बाज़ार एकाएक बन्द हो जाएंगे
सूनी पड़ जाएगी सड़कें और मोहल्ले की गालियाँ
ज्ञान-विज्ञान के सभी अत्याधुनिक उपकरण लाचार और शिथिल पड़ जाएँगे
पार्कों और मैदानों में खेलते हुए बच्चे दैनिक मजदूरी करने वाले असंख्य श्रमिक बेवजह
यूँ ही यहाँ-वहाँ घूमते लोग इस तरह घरों में बंद पड़ जाएँगे !
किसने सोचा था यातायात के तमाम साधन बेमानी हो जाएंगे
धरी की धरी रह जाएंगी आलीशान सवारियाँ,
भूख से तड़पने और बेगाने शहर में मरने का डर हजारों लोगों को एकाएक कर देगा बेघर
वे चल पड़ेंगे गाँव की ओर पैदल ,
जहाँ से आये थे बेहतर ज़िन्दगी की उम्मीद में
लौट जाना होगा बचा-खुचा जीवन समेटकर
हाँ, बहुत से लोग घरों तक पहुँचे जरूर मगर कुछ को तोड़ देना होगा दम
जब चलने से मना कर देंगे कदम!
सोचा था आधुनिकता की अंधी दौड़ में भागती दुनियाएक दिन जड़ता के अंधे कुएं में गिर जाएगी
जहाँ से निकलने के सारे रास्ते बंद नज़र आएंगे
मानव के बनाये सारे घातक हथियार धरे रह जाएंगे
किसने सोचा था बिना हथियारों के भीमारे जा सकते हैं असंख्य लोग
दुनिया के शक्तिशाली देश असहाय हो जाएंगे
अपनी तमाम शक्तियों के बावजूद !
किसने सोचा था अतिआधुनिकता की ये नंगी दौड़ हमें कर देगी फिर से नंगा
विकास के सारे मानक हो जाएंगे ध्वस्त ,सरकारों की भी हालत हो जाएगी पस्त
धर्म, समाज, संबंध पीछे छूट जाएंगे
तमाम अनुष्ठान पूजा-पाठ सब स्थगित हो जाएंगे
ज़िंदा रहना ही प्राथमिकता बन जाएगी
हम उलटे पाँव चल पड़ेंगे जीवन की
एक वायरस से डरकर
किसने सोचा था ऐसी भी दुनिया देखेंगे हम !