मैं अब कुछ नहीं कहूँगा !
मैं अब कुछ नहीं कहूँगा !
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मैं अब कुछ नहीं कहूँगा
क्योंकि मेरे कहने और न कहने में
फ़र्क कुछ भी नहीं है अब
कहने से ज्यादा जरुरी होता है
कहे हुए को सुन लेना
मगर सुनने के लिए
कानों में जब कोई इच्छा न रहे
स्पंदन न रह जाय भावनाओं की
देह की भाषा भी
जब कोई जवाब न दे
तमाम बातें सुनने के बाद भी
ऐसे में कहते रहना या सुनाते रहना
सिर्फ दीवारों को
ये मानकर कि
उनके भी कान होते हैं
वो भी सुन लेते हैं हमारे द्वारा कहे गए
हर एक शब्द को
ग़ैर जरुरी लगता है अब
इसलिए मैं अब कुछ नहीं कहूँगा
खामोशी सबसे बड़ा हथियार है
अपनी बात कहने के लिए
और ये बात
मुझे पहले ही समझ जानी चाहिए थी