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Naveen Singh

Tragedy

4  

Naveen Singh

Tragedy

पुलवामा के शहीदों के नाम

पुलवामा के शहीदों के नाम

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पुलवामा के शहीदों के नाम: सैन्य धर्म 

जब वो

सरहदों पर साँसों की शतरंज सजाये बैठे थे।

घरवालों की आसों को दाव पर लगाये बैठे थे।

हर हिंदुस्तानी का अभिमान बचाये बैठे थे।

वो भरतवंशियों की आन का जाम लगाये बैठे थे।

मातृभूमि की ख़ातिर मरघट का उपहास बनाये बैठे थे।

भारत माँ पर आँच न आये, दधीचि अपनी अस्थियाँ सुलगाये बैठे थे।


पुलवामा के शहीदों के नाम: कायर आघात

तब

सिंहो के काफ़िले पर भेड़िया छदम किया था।

सिंह गर्जनाओधूर्त-धमाके में दफ़न किया था।

लालक्षत-विक्षत छाती देख भारत रो पड़ा था।

तिरंगे की पहचान आज तिरंगा ओढ़े सो पड़ा था।

माँ को जब लाल के अंतिम दरस को मोहताज होना पड़ा था।

उसके कलेजे का टुकड़ा,आज टुकड़ों में बँधा पड़ा था।

माटी का कण-कण केसरी लहू से लथपथ सना था।

वीर सपूतों का बलिदानी रक्त इतना घना था।

क़ुर्बान सपूतों के घर बस दीपक नहीं बुझा था।

पूरे भारत कुल का सूरज तम में डूब गया था।

हर शहीद के जनाज़े में महाकुंभ उमड़ पड़ा था।

हर शहीदी शहर मानो प्रयागराज बना पड़ा था। 

कायरों ने भ्रमवश प्रहरियों पर प्रहार किया था।

नहीं, अब भारत माँ का आँचल छू लिया था।

हर गली चौराहों पर बस एक ही गूँज उठी थी।

सापों-सपोलों को ही नहीं, अब सपेरों को कुचलने की ठनी थी।

पुलवामा के शहीदों के नाम: सैनिक जन शिरोमणि 

भारतवासी से सिरमौर्य कौन है गर यह पूछो।

जंत्री-मंत्री-संत्री नहीं हैं बस यह बूझो।

सैनिक हर घर का राजमुकुट है यह बूझो।

जब कोई इन समर सपूतों को हाँथ लगा जाता है।

वह भरतवंशियों की गिरेबान पकड़ सा जाता है ।

तब बच्चा-बच्चा भगत सिंह शेखरअशफ़ाक़ बन जाता है।

भारत के चप्पे-चप्पे पे इंक़लाब लिखहै।

शिवाजी की तेज तलवार तड़प सी जाती है।

राणा का स्वाभिमानी भाला भड़क सा जाता है।

तब हर नारी दुर्गा रणचंडी बन जाती है।

दानवों की मुंडीमाला पहन ही चैन पाती है।

पुलवामा के शहीदों के नाम: बालाकोट प्रतिघात 

तब देख देशवाशियों का दम दिल्ली ने दमखम दिखलाया था।

वीरों की तेरहवीं से पहले बालाकोट में बम बम करवाया था।

धू-धू करके भस्म हुये थे नरभक्षी अब सिंह ने आखेट लगाया था।

भारत ने अपनी कूटनीतिक कौशल का जग में लोहा मनवाया था।

सीमापार वाले ने फिर अपना असली रंग दिखलाया था।

कुछ नहीं हुआ कह कर,जग को फिर भरमाया था।

लेकिन बाज़ ने साँप को पंजे में जो जकड़ लिया था।

और विषधर अपनी फितरत से बाज नहीं आ सका था।

फाल्कन की गीदड़ भभकी लेकर भारत में आ उड़ा था।

तब अभिनन्दन ने शौर्य-चन्दन लगाया था।

मिराज के शेर ने फाल्कन के हाँथी से हाँथ मिलाया था।

पल भर में शेर ने मतवाले गज को रज में मिलाया था।

शेर गया दूसरे जंगल तो क्या, वहाँ भी राजा कहलाया था।

शेर आ गया ये देखो कहके, पूरे पाक में कोहराम मचाया था।

मौत को मात देकर,अब डर को भी डराया था।

रग-रग उसका सैन्य धर्म निभाया था।

शत्रु धरा पर भी अभिनन्दन अजातशत्रु बन आया था।

जिन्नाह की जमीं पे उसने ने भारत चरित्र फहराया था।

जय हिन्द जय हिन्द की सेना 



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