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Naveen Singh

Tragedy

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Naveen Singh

Tragedy

आगामी

आगामी

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गर्भ काल 

मैंने देखा है, शून्य से संसार बनते हुए। ।

कुछ भी नहीं में ज़िंदगी पनपते हुए।

उम्मीदों का घोंसला बुनते हुए।

एक तरल में तराने बनते हुए।


ब्रम्हाण्ड में नये तारे को टिमटिमाते देखा ।

अन्दर एहसासों का दिया जलते देखा।

आँखों में आँखो से बातें करते देखा।


मैंने एक आइने के अन्दर आइने को देखा।

उस आइने को ताप में तपते देखा,

अंतस पे आँच न आये,

ख़ुद को पिघलाते देखा।

भक्षियों से दो-दो हाँथ करते देखा ,

मैंने गौ को सिंहनी बनते देखा।

बाज को रिवाजों से बाजते देखा।

छाया को बचाती काया को देखा।

अमावस के तम में ,

पूरनमासी को जलते देखा।


 ग्रंथिय बहिष्कार

पोथी-पतरों-पुरणो में,

हाँथो-माथों की लकीरों में,

कुण्डलियों-कमंडलियों में ,

तेरे भस्म में, हर रस्म में,

आरती-चलीसों में,

रामायण के श्लोकों में,

मानस की चौपाइयों में,

किसी और को चाहते देखा।

हर जगह शांता को सिसकते देखा ।

ग़ुमनामी में ख़ुद को खोजते देखा।

दशरथ को शांता का गोदान कर ,

राम लला का वरदान पाते देखा।

कौशल्या की छाती को रोते देखा।

मन में इक्ष्वाकु कुल को कोसते देखा।

लोगों को ख़ुद की रौंद कर नवमी में तुमको खोजते देखा।

आगामी की पीर: कन्या भ्रूण हत्या

किस कलम से कथा लिखे हो?

मेरी अधूरी साँसों की व्यथा लिखे हो।

स्याही है, ज़रा देखो!

मेरा लहू भरे हुये हो?


ज़िंदगी पनपती जिस खेत में,

कितनी साँसे घुँटी हैं उस रेत में?

मनचाहा फल खाने को,

कितनी रेत दिये सेत में?


कर्ज़ मेरा ज़्यादा न था,

उधारी धड़कनों का वादा न था।

कुछ ख़ून कुछ पानी,

तुच्छ महीनों की मेरी कहानी।


माफ़ करना उम्मीद का दिया न बनी,

तेल कम था और तूफ़ान से थी ठनी।

कोई जो आड़ देता, बच जाती।

क्या पता आगे तुम न पछताती?



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