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Naveen Singh

Tragedy

4  

Naveen Singh

Tragedy

श्रद्धांजलिरेलपथ पर बलिदान हुए भूख-वीरों को

श्रद्धांजलिरेलपथ पर बलिदान हुए भूख-वीरों को

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सिंधु मथा हलाहल निकला।

हिंद थमा ग़रीब निकला। 

दोनों ज़हर हैं, कौन पीले ?

रगों में मौत कौन ढीले ?

वो भटकता रहा दर-बदर।

 कटता रहा हर सड़क शहर।

थकान पाँव की बेड़ियाँ बनी नींद सुबह का इंतजार बनी।

रेल चिर निद्रा में सुला गयी।

अंग-अंग उनका छितरा गयी।

 पड़ाव को मंजिल बना गयी। 

जो अवशेष बिखरे पड़े थे ,ग़ौर से देखा?

बस टुकड़े न थे। बूढ़ी आँखों के चश्मे थे।

 नन्हे खिलौनों की रश्मे थे। 

उम्मीदों के कलम-दवात थे। 

सूने चूल्हे की आग थे।

 कुमकुम के इंतजार की हार थे।

 भूख की जंग में शहीदों की रार थे। 

चील-कौए कुछ टुकड़े पाए होंगे।

 कितनों की भूख मिटाए होंगे। 

भूख के तवे पर सत्ता की रोटी ख़ूब सेंकी।

 ललचाता रहा, उसने पर रोटी एक न देखी। 

बंद में सन्नाटा कहाँ है ?

सुनों बहारों !ग़रीबी हटाओ !

गुँजाओ चारों पहरों। 

साँस, तू भी कितनी रंगीन हैं ?

किसी की जाय तो शेषनाग डोले,

किसी की जाय तो बस चिता रोले।



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