श्रद्धांजलि- रेलपथ पर बलिदान हुए भूख-वीरों को (Prompt#9)
श्रद्धांजलि- रेलपथ पर बलिदान हुए भूख-वीरों को (Prompt#9)
सिंधु मथा हलाहल निकला।
हिंद थमा ग़रीब निकला।
दोनों ज़हर हैं, कौन पीले ?
रगों में मौत कौन ढीले ?
वो भटकता रहा दर-बदर।
कटता रहा हर सड़क शहर।
थकान पाँव की बेड़ियाँ बनी
नींद सुबह का इंतजार बनी।
रेल चिर निद्रा में सुला गयी।
अंग-अंग उनका छितरा गयी।
पड़ाव को मंजिल बना गयी।
जो अवशेष बिखरे पड़े थे ,
ग़ौर से देखा? बस टुकड़े न थे।
बूढ़ी आँखों के चश्मे थे।
नन्हे खिलौनों की रश्मे थे।
उम्मीदों के कलम-दवात थे।
सूने चूल्हे की आग थे।
कुमकुम के इंतजार की हार थे।
भूख की जंग में शहीदों की रार थे।
चील-कौए कुछ टुकड़े पाए होंगे।
कितनों की भूख मिटाए होंगे।
भूख के तवे पर सत्ता की रोटी ख़ूब सेंकी।
ललचाता रहा, उसने पर रोटी एक न देखी।
बंद में सन्नाटा कहाँ है ? सुनो बहारों !
ग़रीबी हटाओ ! गुँजाओ चारो पहरों।
साँस, तू भी कितनी रंगीन हैं ?
किसी की जाय तो शेषनाग डोले,
किसी की जाय तो बस चिता रोले।