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Naveen Singh

Tragedy

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Naveen Singh

Tragedy

श्रद्धांजलि- रेलपथ पर बलिदान हुए भूख-वीरों को (Prompt#9)

श्रद्धांजलि- रेलपथ पर बलिदान हुए भूख-वीरों को (Prompt#9)

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सिंधु मथा हलाहल निकला। 

हिंद थमा ग़रीब निकला। 

दोनों ज़हर हैं, कौन पीले ?

रगों में मौत कौन ढीले ?


वो भटकता रहा दर-बदर। 

कटता रहा हर सड़क शहर।


थकान पाँव की बेड़ियाँ बनी 

नींद सुबह का इंतजार बनी।

रेल चिर निद्रा में सुला गयी।

अंग-अंग उनका छितरा गयी। 

पड़ाव को मंजिल बना गयी। 


जो अवशेष बिखरे पड़े थे ,

ग़ौर से देखा? बस टुकड़े न थे। 

बूढ़ी आँखों के चश्मे थे। 

नन्हे खिलौनों की रश्मे थे। 

उम्मीदों के कलम-दवात थे। 

सूने चूल्हे की आग थे।

 

कुमकुम के इंतजार की हार थे। 

भूख की जंग में शहीदों की रार थे। 


चील-कौए कुछ टुकड़े पाए होंगे। 

कितनों की भूख मिटाए होंगे। 

भूख के तवे पर सत्ता की रोटी ख़ूब सेंकी। 

ललचाता रहा, उसने पर रोटी एक न देखी। 

बंद में सन्नाटा कहाँ है ? सुनो बहारों !

ग़रीबी हटाओ ! गुँजाओ चारो पहरों। 


साँस, तू भी कितनी रंगीन हैं ?

किसी की जाय तो शेषनाग डोले,

किसी की जाय तो बस चिता रोले।



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