द्रौपदी
द्रौपदी
युद्ध की ललकार को तुम,
महाभारत का सार हो तुम।
अधर्म पर प्रहार हो तुम,
करुणा का संसार हो तुम।
आज द्रौपदी हार हो तुम,
कौरवों का मोह अपार हो तुम।।
अब कैसे नारी को अलंकृत कर पाओगी,
बताओ द्रौपदी इतनी द्रौपदी कहाँ से लाओगी ?
द्रुपद कन्या बनी द्रौपदी,
पांचाली से वैश्या कहलाई।
अस्मिता की आड़ में,
तुमने तो तबाही मचाई।
आज सिहर - सिहर रोती हो,
हुई अंधकार से जब सगाई।।
अब कैसे जीवन में दमक लाओगी,
बताओ द्रौपदी इतनी द्रौपदी कहाँ से लाओगी ?
शकुनि बड़े भैया के मध्य,
चौसर का दाँव है तू।
भवसागर से तरने वाली,
अपने कुल की नाव है तू।
आज लौकिक रस से वशीभूत,
धूर्तों का लगाव है तू।।
अब कैसे नया महाभारत रचाओगी,
बताओ द्रौपदी इतनी द्रौपदी कहाँ से लाओगी ?
भूमिजा सी तेरी पवित्रता,
सैरंध्री तेरे गौरव का है अलंकार।
पार्थ से विवाह को आतुर,
सिंदूर लगाया नाम के और चार।
आज विवाह के अभिलाषी,
पतितों की खड़ी है कतार।।
अब पांचाली सी पवित्रता कैसे पाओगी,
बताओ द्रौपदी इतनी द्रौपदी कहाँ से लाओगी ?
समक्ष खड़ा था जब अपमान,
यादवेंद्र का किया आह्वान।
अंबर से विशाल अंबर,
तेरी पवित्रता को था दान।
आज अंबर ही सिकुड़ गया,
मिट्टी में मिल गया मान।।
अब केशव को पुनः कैसे बुलाओगी,
बताओ द्रौपदी इतनी द्रौपदी कहाँ से लाओगी ?
रुदन तुम्हारा बना आवाज़,
एक एक कुलवंशी को रुलाया।
प्रतिकार की धधकती अग्नि में,
कुल के सुख को जलाया।
आज जली पड़ी हो तुम,
तुम्हें जब राख बनाया।।
अब किस किस को जला पाओगी,
बताओ द्रौपदी इतनी द्रौपदी कहाँ से लाओगी ?
सिसक रही थी तू महाभारती,
दरबार बैठा था अचल।
पर कृष्ण की ए कृष्णा,
प्रतिकार तेरा हुआ सफल।
आज पुनः सिसक रही है तू,
पर दुशासन तो है अटल।।
अब कैसे इस अंधे समाज को जगाओगी,
बताओ द्रौपदी इतनी द्रौपदी कहाँ से लाओगी ?
जिसने किया तेरा चीर हरण,
उसको तो चीर-चीर कर दिया।
दर्द दिया जिस कौरव कुल ने,
उसको तो तीर-तीर कर दिया।
आज पड़ी हो जब लाशें बनकर,
आसुंओं से पृथ्वी को नीर-नीर कर दिया।।
अब दुशासन के रक्त से कैसे नहाओगी,
बताओ द्रौपदी इतनी द्रौपदी कहाँ से लाओगी ?
हम दोनों ने श्रृंगार किया,
काजल को कलंक बनाया।
फिर उसी कलंक से,
कातिलों के मुख को सजाया।
आज इसी कलंक ने,
मेरे संग तुझे भी काला बनाया।।
अब कैसे इस छाया व छवी को बचाओगी,
बताओ द्रौपदी इतनी द्रौपदी कहाँ से लाओगी ?
