दोस्ती
दोस्ती
जिस दोस्त से मिलने को तड़पती रही
जिस दोस्त की हर पल तलाश करती रही
जब मिली उससे तो पता चला,,,,,
वो तो भूल चुकी थी मुझको बहुत पहले ही
उसे तो मेरी कभी याद ही ना आई
एक मैं पागल उसके साथ बीते पलों को
याद कर उससे मिलने को बेकरार रही
मैं मिली उससे एक दोस्त की तरह और
वो तो दुनियादारी का दिखावा करती रही
उसकी बातों में हमारी दोस्ती नजर ही नहीं आई
वो दोस्त नहीं किसी की पत्नी बन सामने आई
कितनी खुशी मिलती है जब बचपन का दोस्त मिलता है
वो खुशी मेरे अलावा उसके होंठों पर नहीं आई
जितनी बेताबी थी उससे मिलने की मन में
उतना ही अब उससे दूर जाने का मन हुआ
वो अब दोस्ती नहीं दुनियादारी निभाने लगी
दोस्ती की नींव अब डगमगाने लगी
लौट आई उसी पांव मैं अपने घर पर
मैं भी उसको अब भूल अपने रिश्तों को निभाने लगी,,,,
