स्त्री का मन
स्त्री का मन
मुझसे ज्यादा कोई गरीब नहीं मैं दान करूं किसका
मां बाप है मेरे मगर सर पर हाथ नहीं उनका
भाई बहन है मेरे मगर प्यार भरा व्यवहार नहीं उनका
दोस्त है मेरे मगर दुःख दर्द में साथ नहीं उनका
सास ससुर की क्या बात करूँ मुझसे लगाव नहीं उनका
पति करते है प्यार मगर दिखावे का है प्यार उनका
बच्चों से भला क्या कहूं मासूम सा बचपन है उनका
खाने को है रोटी मगर भीख में मिला अहसान उनका
कहने को है घर मेरा मगर मालिकाना हक है उनका
मायके में अब वो बात नही जिसे घर कहूं मैं खुद का
हर रिश्ते से बंधी हूं मैं लेकिन मुझसे नही रिश्ता उनका
मेरे पास ऐसा कुछ भी नहीं जिसे मै कहूं कभी अपना
मुझसे ज्यादा कोई गरीब नहीं दान करूं मैं तो किसका......
