क्या मुमकिन है?
क्या मुमकिन है?
क्या मुमकिन है बदलना इस जहां को
तड़पती धरती ,,,जलते आसमा को,,,
हर दिन, हर पल, लगता है एक डर,,
कल फिर ना आए कोई निर्भया की नई खबर
बदलेंगे जहां को ये सोच बहुत अच्छी हैं,,
यथार्थ के धरातल पर तो ये कहानियों में ही दिखती है,,
ना कानून बदला ,,,,,ना घृणित मानसिकता,,
बदलती है सिर्फ भाषणों की तालिका,,
न्याय, न्याय, करके सिर्फ मोमबत्तियां है पिघलती,
कुछ दिनों बाद फिर निर्भया रास्ते पर है मिलती,,,
काश! काश! कि यह एक मानसिकता बदलती,,
देश की बेटियां निर्भय होकर राहों पर चलती,,
जब ये सोचती हूं मैं खुद से पूछती हूं,,
क्या मुमकिन है बदलना इस जहां को,,
तड़पती धरती, जलते आसमा को।।