वक्त-वक्त की बात है
वक्त-वक्त की बात है
वक्त रुक गया है,
वक्त थम गया है।
न घर है, न घाट,
बंद है कपाट सभी।
यंत्रणाओं से घिरी,
आत्माएँ हताश सभी।
प्रेम की न छाप है,
करुणा का न ताप है।
धीर से अधीर हो,
बस मनुजत्व महावीर हो।
पर आशा में बासा छिपी,
आशा पर पृथ्वी टिकी।
प्रकाश गर एक ओर हो,
दिखे चाँद चकोर को।
मान लो की,
प्रपंच के लिबास में,
परवरदिगार की है गली।
क्षमा आप की आप से,
गौरव के पथ पर ले चली।
