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JAYANTA TOPADAR

Tragedy

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JAYANTA TOPADAR

Tragedy

कठपुतलियाँ...

कठपुतलियाँ...

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वक्त के हाथों हम सब

कठपुतलियाँ हैं...

एक डोर खींचे, तो

हम नाचने लगते हैं

और दूसरी डोर खींचते ही

हम सब रुक जाते हैं !


ये कैसी

क़शमक़श भरी ज़िंदगी...?

कहाँ का है

अपना सही ठिकाना...??

कब तक यूँ

गिरते-पड़ते चलते जाना...??


काश...काश...हम अपने

मर्ज़ी के मालिक होते,

तो बेशक़ अपनी दुनिया

अलग बसाते,

जहाँ जालसाज़ी न हो,

धोखाधड़ी न हो,

बेहयाई न हो, बेवफाई न हो...

जहाँ लोग पीठ पीछे

छूरा न घोंपे...


क्या ऐसी कोई दुनिया नहीं,

जहाँ चापलूसों का बोलबाला न हो,

चमचागीरी और खुशामदी न चले...???

मगर अफसोस ये है कि

आजकल लोग

घड़ी की सुईयों-सा

अपना दैनंदिन कर्म किया करते हैं...!!!

किसी के पास, किसी दूसरे के लिए

निस्वार्थ भाव से

वक्त बिताने का भी

थोड़ा-सा वक्त नहीं...

सचमुच हम सब

कठपुतलियों से कम नहीं..।!!!


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