" पाखण्ड का अंधकार "
" पाखण्ड का अंधकार "
अंधविश्वास का फैल गया ऐसा मक्कड़ जाल ,
बस ढोंग, पाखण्ड का हो रहा ,चारों ओर प्रसार ।
तरह तरह के गुरु कर रहे , अपना पंथ प्रचार ,
जनता को वो छल रहे , कह स्वयं को प्रभु अवतार ।
धर्म की आड़ में फैल रहा , पाखंड का अंधकार ,
खुद के पास चाहे कुछ न हो, दिखाएं सबको चमत्कार।
बगुला भगत सन्यासी बने, रख कर अनुचर उदण्ड ,
मोह माया को कभी न त्यागें , ये काहे के संत ।
इनकें माया जाल में फंसकर, रहे भक्त इस तरह झूम,
कुपित मार्गदर्शन में भटक कर,गए भक्ति मार्ग भी भूल ।
इनके पीछे लग कर दुनिया, हो गई है बदहाल,
अंधभक्ति के मोह जाल में लुटकर ,हाल हुआ बेहाल ।
मुखौटा पहने धर्म का , करें न ये आत्म-सन्ताप ,
हाथ में माला , मन है काला , हृदय में उनके पाप ।
धन कुबेर ये बन गए , धर कर साधु का वेश ,
भगवान के नाम पर लूट रहे , देकर मिथ्या उपदेश ।
दौड़ दौड़ कर इन पाखंडियों को, दुनिया करती नमस्कार,
घर पर बैठे बूढ़े मात पिता का , कर रही तिरस्कार ।
मात पिता गुज़र गए जब ,ले कर अपमान का भाव ,
लोक दिखावे के लिए बेटा, कर रहा उनका श्राद्ध ।
कैसे समझें धन्य इस धरती पर , कैसे हों अभिभूत ,
जानवर को दें भगवान का दर्जा , इंसान हुए अछूत ।
दया , धर्म कुछ बचा नही, न बचा कोई ईमान ,
पत्थर के भगवान बन गए , पत्थर के इंसान ।
छोड़ो मन्दिर मस्जिद जाना, गर नही है हृदय में प्यार ,
सुबह पूजते ईश को ,दिनभर करें बेईमानी भ्रष्टाचार ।
नारी का सम्मान नही, ना चल रहा बलात्कारियों पर ज़ोर।
पाखण्डी कर रहे जागरण.. मचा मचा कर शोर।
एक तरफ व्रत और देवी पूजा, एक तरफ हो रहा अत्याचार ,
बस ढोंग पाखण्ड की हो रहा है ,चारों ओर प्रसार ।।