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Suresh Koundal

Tragedy

4.9  

Suresh Koundal

Tragedy

" पाखण्ड का अंधकार "

" पाखण्ड का अंधकार "

2 mins
448


अंधविश्वास का फैल गया ऐसा मक्कड़ जाल ,

बस ढोंग, पाखण्ड का हो रहा ,चारों ओर प्रसार ।

तरह तरह के गुरु कर रहे , अपना पंथ प्रचार ,

जनता को वो छल रहे , कह स्वयं को प्रभु अवतार ।

धर्म की आड़ में फैल रहा , पाखंड का अंधकार ,

खुद के पास चाहे कुछ न हो, दिखाएं सबको चमत्कार।

बगुला भगत सन्यासी बने, रख कर अनुचर उदण्ड ,

मोह माया को कभी न त्यागें , ये काहे के संत ।

इनकें माया जाल में फंसकर, रहे भक्त इस तरह झूम,

कुपित मार्गदर्शन में भटक कर,गए भक्ति मार्ग भी भूल ।

इनके पीछे लग कर दुनिया, हो गई है बदहाल,

अंधभक्ति के मोह जाल में लुटकर ,हाल हुआ बेहाल ।

मुखौटा पहने धर्म का , करें न ये आत्म-सन्ताप ,

हाथ में माला , मन है काला , हृदय में उनके पाप ।

धन कुबेर ये बन गए , धर कर साधु का वेश ,

भगवान के नाम पर लूट रहे , देकर मिथ्या उपदेश ।

दौड़ दौड़ कर इन पाखंडियों को, दुनिया करती नमस्कार,

घर पर बैठे बूढ़े मात पिता का , कर रही तिरस्कार ।

मात पिता गुज़र गए जब ,ले कर अपमान का भाव ,

लोक दिखावे के लिए बेटा, कर रहा उनका श्राद्ध ।

कैसे समझें धन्य इस धरती पर , कैसे हों अभिभूत ,

जानवर को दें भगवान का दर्जा , इंसान हुए अछूत ।

दया , धर्म कुछ बचा नही, न बचा कोई ईमान ,

पत्थर के भगवान बन गए , पत्थर के इंसान ।

छोड़ो मन्दिर मस्जिद जाना, गर नही है हृदय में प्यार ,

सुबह पूजते ईश को ,दिनभर करें बेईमानी भ्रष्टाचार ।

नारी का सम्मान नही, ना चल रहा बलात्कारियों पर ज़ोर।

पाखण्डी कर रहे जागरण.. मचा मचा कर शोर।

एक तरफ व्रत और देवी पूजा, एक तरफ हो रहा अत्याचार ,

बस ढोंग पाखण्ड की हो रहा है ,चारों ओर प्रसार ।।


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