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Ranjana Mathur

Tragedy

4  

Ranjana Mathur

Tragedy

सुन रहा है न तू

सुन रहा है न तू

2 mins
134


(समाचार पत्रों में पढ़ी गई विदेश में बसे एक बेटे की एक असहाय वृद्धा माँ के दर्दनाक अंत की कहानी पर आधारित )


जिस दिन तेरा एहसास हुआ,

न पांव जमीं पर पड़ रहे थे मेरे।

नौ माहों तक हथेलियों पर,

रख रहे थे मुझ को पापा तेरे।

तेरे स्वागत की तैयारी करते हम सांझ सवेरे।

फिर आया तू लाया ख़ुशियाँ,

रोशन हो गयी हमारी दुनिया।


न याद था कोई आराम न कोई निंदिया,

तेरे लिए थे सब दिन सब रतिया।

तेरी इक आहट पर जागते,

छींक भी आ जाए तो पापा भागते।

तुरन्त डॉक्टर को ले आते,

जरा सा तुझे अस्वस्थ जो पाते।


वो तेरा पहला कदम बढ़ाना,

वो तेरा पहला बोल तुतलाना।

तेरी हर छवि को निहारना,

तुझे पोसना तुझे पालना।

तिल तिल तेरा यह बढ़ता तन-बदन,

इसी को अर्पित था हम माँ – बाप का जीवन।


तू भी प्यार पाकर था बहुत मगन,

हर ख़्वाहिश पूरी मन तेरा प्रसन्न।

बना युवक तू पूर्ण की देश की पढ़ाई,

भावी उन्नति हेतु विदेश जाने की बात आई।

मैं थी व्याकुल पापा थे बेचैन पल छिन,

लेकिन तुम तो गिन रहे थे जाने के दिन।

क्यों न गिनते तुम्हें दिख रही थी,

बेटा सामने अपनी तरक्की।


हम भी मन से दे रहे थे कोटि-कोटि आशीष,

खुश हम भी थे यह बात थी पक्की।

फिर वह दिन भी आ गया,

जब तुम उड़ गए अमरीका।

हमारा जीवन तो तुम्हारे जाते ही,

हो कर रह गया एकदम फीका।

पहले पहले फोन आते थे तुम्हारे,

शायद तुम्हें याद आते थे हमारे साये।

किन्तु बाद में शनैः शनैः बंद हो गये,

तुम से बात हो पाती थी गाहे-बगाहे।


तेरी याद करते हुए तेरे पापा,

चले गए तेरे वियोग के ग़म में।

मैं वृद्धा अकेली घबराती हूँ,

या तू ले जा बेटा या छोड़ दे वृद्धाश्रम में।

मेरी आवाज़ तो बेटा शायद,

तुझ तक पहुँच न पाई।

तेरा मुखड़ा देखने की लालसा लिए,

तेरे आने से पहले ही मुझे मौत आई।


न ही मैंने सद्गति ही पाई,

न हुआ मेरा अंतिम संस्कार।

तू जब भी घर पर आएगा,

मैं न मिलूंगी मिलेगा मेरा कंकाल।

मेरा है आशीष तुझे,

खूब कमाना तुम डॉलर।

इतना अमीर बनना तुम बेटा,

लगाना घर भर में रुपयों की झालर।


परन्तु बेटा अपनी संतान से,

हमारी यह कहानी सदा छिपाना।

वरना फिर से कहीं यह न शुरू हो,

क्योंकि इतिहास चाहता है

अपने आप को दोहराना।

अपनों के बीच लेना बेटा अंतिम श्वास,

यही तेरी माँ की तमन्ना यही आखिरी आस।



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