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सोने की चिड़िया

सोने की चिड़िया

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जाति मज़हब के नाम पर हर रोज़ लुटते देखा है

इस सोने की चिड़िया को हर रोज़ टूटते देखा है


है देश की अब परवाह किसे, कौन देश का अब गुणगान करे

जो खुद का इज्ज़त निलाम किया, वो देश का क्या सम्मान करे


पागल थे वो दीवाने जो देश पे बलिदान हुए

मिट सी गई हस्ती उनकी, गुमनाम वो ईमान हुए


वो मशहूर हुए कुछ इस कदर, हर तरफ उन्ही का नाम है

जो देश के टुकड़े किये, देश उन्ही का ग़ुलाम है


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