सोचता हूँ कभी कभी
सोचता हूँ कभी कभी


हम बदले है
या वक़्त है बदला
सोचता हूँ कभी कभी
हमने है छोड़ा
या उसने है निकाला
सोचता हूँ कभी कभी
अब तो निकल चूका हूँ
बहुत दूर आ चूका हूँ
लौटना भी मुश्किल सा है
नया हुआ एक सिलसिला सा है
जो भी मिला है जितना मिला है
अमृत है या ज़हर का प्याला
सोचता हूँ कभी कभी
ये अजनबी सी राहें
जो हमने चुनी है
हर पल ख्वाब देखती निगाहें
करती अब अनसुनी है
ये किस्मत का लिखा है&nbs
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या गुल हसरतों का खिला है
जवाब ढूंढ़ता हूँ कभी कभी
औरों को देखता हूँ तो
अपना अतीत लगता है
जिस रौशनी में मैं रोशन हुआ
ऐसा एक दीप लगता है
जो हमको भी पसंद था कभी
वही संगीत लगता है
तुम भी वहीं जा रहे हो
जिन मज़िलों के मुसाफिर कभी हम थे
तुम्हे भी वहीं मिलेगा
जो राह में कई सितम थे
चलता रहने दूँ तुम्हे
या टोक दूँ
जाने दूँ उसी राह पर
या रोक दूँ
इसी उदेढ़ बुन में रहता हूँ कभी कभी