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Vijay Kumar parashar "साखी"

Tragedy Inspirational

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Vijay Kumar parashar "साखी"

Tragedy Inspirational

सोच

सोच

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जिनकी होती जैसी सोच

वो बनते वैसे इंसान रोज

जिनके मन मे होता, खोट

स्वकर्मो से खाते, नित चोट

तम कितना ही लगा ले, जोर

कभी हरा नही सकते, भोर

वो कैसे खाएंगे अखरोट ?


जो झूठ की पहने है, लंगोट

उनकी होती है, रोज ही मोज

जिनकी पवित्र होती है, सोच

वो क्या करेंगे नई खोज


जो इस धरती का है, बोझ

जिन्हें लगा है, आलस्य रोग

वो न पाते, सफलता गोद

वो उड़ सकते है, व्योम

जिनकी ऊंची है, सोच


जिनकी गिरी होती, सोच

वो गिराते है, खुद को रोज

एकदिन वही खाते, चोट

जो रखते है, भीतर खोट

वो बनते है, हीरा अनमोल


जो खुद का समझते, मोल

जिनकी होती, सही सोच

वो झूठ के उड़ाते है, होश

वो सत्य की जलाते जोत

जो सत्य दीप जलाते रोज।


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