सोच में जिंदा हो
सोच में जिंदा हो
सोच में मेरी जिंदा हो तुम
नजरों के ख्वाबों की बेताबियों
की तरह जिंदा हो तो तुम
मेरा यूं शब्दों का लिखना
और तेरा यूँ कविता बनकर
निकलना तो जिंदा हो तुम
हवा के झोंकों का यू आज़ाद
बनकर बहना और तेरा यूं
धीरे से ऐसे मुझे छू जाना
तो जिंदा हो तुम
जब तुम एक दरिया के लहरों
की तरह बह रहे होगे, और उसमे
मैं ख्वाबों के हर लम्हों को बुन रही
होंगी तो समझो तुम जिंदा हो तुम
क्यों इतनी हैरानियों को लेकर
चल रहे हो तुम, दिलों की
बेताबियों को क्यों नहीं सुन
रहे हो तुम…….
क्योंकि मेरी हर एक सोच में
अब तुम जिंदा हो तुम!