Neerja Sharma

Tragedy

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Neerja Sharma

Tragedy

संस्मरण (अतुकांत कविता )

संस्मरण (अतुकांत कविता )

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बरसात कहो या वर्षा

कोई फर्क नहीं दिल जानी 

हमारी तो है दुनिया में बरसात की

सबसे अलग कहानी । 


मैंने सपने में भी नहीं सोचा था 

कभी देखूँगी मुंबई की बरसात 

पर क्या हुआ मेरे साथ, 

हाल सुनो दिल थाम।


चंडीगढ़ से मुंबई का सफर है सुहाना ...

जुलाई का महीना 

जब बम्बई में बारिश की भरमार 

हर तरफ से पानी का न था

कोई पारावार ।

समझ नहीं आता था

पैर कहाँ रखो तो चलो कहाँ ? 

थूकने वालों का कोई हिसाब नहीं ..

सड़क के किनारे बैठने वालों का भी जवाब नहीं ।


बात 1990 की

चंडीगढ़ से मुंबई ट्राँस्फर

स्कूल जॉइन करना था

के वि 3 कोलाबा में...

पहला दिन मेरा मुंबई जिंदगी का ,

वह भी मुंबई की लोकल ट्रेन से ।


पतिदेव ले गए

ज्वाइन करवाया

और ...

चले गये आफिस ।

बातचीत और वापसी का सब रास्ता

समझ हो गई मैं निश्चिंत।


अचानक मैसज आया

ट्रेन बन्द हो रही हैं

छुट्टी हो गई ।

1:00 बजे तक ऐसा हुआ कमाल

बारिश के थमने का नहीं आसार।


 मुझे कुछ भी ना पता  

 चंडीगढ़ से मुंबई बस... 

 इतना ही , 

अब क्या होगा?

न कोई फोन न कोई फोन नम्बर ।


चलिए कोई बात नहीं 

अब चलना तो पड़ेगा। 

किसी के साथ जैसे- तैसे पहुंची

चर्चगेट स्टेशन ,

लेकिन मुश्किल यह थी

जिसके साथ जाने का सोचा था

वह तो पहले ही चली गई थी। 


अब ,अब क्या करूँ? 

कोई जान नहीं

कोई पहचान नहीं।

रिटर्न टिकट हाथ में 

जो सुबह मैंने ले रखी थी ,

उतरना गोरेगांव ।


बारिश की पूछो मत बात

 ट्रेन के ट्रैक भी दिखाई नहीं दे रहे थे।

1:00 बजे से खड़े - खड़े

 शाम के 4:30 बज गए ...

 बस यही पता था 

 यहां से जो ट्रेन चलेगी

 उससे मैं गोरेगांव पहुँच जाऊँगी।

इससे ज्यादा ना पता था।

 

डर कर न पूछूँ

न किसी को देखूँ

लगे मानो हर निगाह

मुझे घूर रही।


मैं अनजान

बहुत कुछ सुना था मुंबई के बारे में 

गुमसुम एक कोने में बैठे-बैठे। 

इंतजार... यह ट्रेन चले

पहुँच जाऊँ।

उसी ट्रेन में उसी डिब्बे के अंदर बैठे -बैठे

जैसे- तैसे करके ट्रेन चली।


फोन तो कर नहीं सकती थी 

उन दिनों तो मोबाइल भी नहीं था 

कुछ भी करो बैठो वहीं

बैठे -बैठे बात करने से

किसी से कहने से 

कुछ भी तो नहीं

अपने ही स्वाल 

अपने ही जवाब।


उसी ट्रेन के चलने के इंतजार में

शाम के 6:30 

उसी ट्रेन में बैठे - बैठे।


सोचो 1:00 बजे के जिस ट्रेन में बैठे

उसके अंदर बैठे -बैठे शाम के 6:30 

लोगों को रास्ता पता था 

कोई उतरता था 

कोई पैदल जाता था 

लेकिन मेरे लिए कहीं कोई रास्ता नहीं ।


स्कूल तो दिमाग से निकल गया पर

पहले दिन की बरसात का

स्वाद

और सोचो कैसे।

निकला होगा वह समय

इतना लंबा समय ट्रेन में बैठे रहना।

कहीं जाने का पता नहीं 

कुछ नहीं खाया

ना टॉयलेट

बस वैसे गुमसुम कोई पूछे भी तो

बात का जवाब नहीं ।


जानती भी किसी को नहीं

एहसास हो कि .....

ये मेरा पहला दिन है मुंबई में। 

भगवान का नाम लिए जाती बार - बार

घर पहुँच जाऊँ बस।


धीरे-धीरे ,धीरे- धीरे चलती

ट्रेन किसी तरह से पहुँची गोरेगाँव स्टेशन,

रात के 10:30 बज गए।


चंडीगढ़ जैसी जगह से

निकलने वाली लड़की 

जिसने जिंदगी में पहली बार की थी 

ट्रेन की यात्रा जब

चंडीगढ़ से मुंबई गई थी।


उसका वह पहला दिन 

वह भी इतना भयानक 

सुबह के निकले तो रात के 10:30 

सोच कर घबराहट,

छोटे बच्चे का क्या हो रहा होगा?

और तो छोड़ो 

अब यह नहीं पता था कि...  

वहाँ से उतर कर रात में घर कैसे जाना है?


पर चलो जो भी हो किस्मत अच्छी थी 

जैसे ही ट्रेन से रात को 10:30 बजे 

उतरी ट्रेन से 

हस्बैंड सामने खड़े थे, 

लेडिज डिब्बे के कारण

समझ नहीं आ रहा था कि हँसू या रोऊँ।

बस खुशी थी कि उनके हाथ में बेटा था 

पहली बार सारा दिन माँ से अलग

बेटे को देखकर सारी टेंशन दूर हो गयी

मुझे लगा कि मैं अपने घर पहुँच गई ।


यह था मुंबई में 

स्कूल ज्वायन करने का पहला दिन 

जिसमें न थी कोई पढ़ाई 

न कोई लिखाई,

था तो केवल अनुभव 

कटु अनुभव मुंबई की लाइफ का

और थी ,

मेरी पहली बरसात

जिसमें ना प्यार

ना मोहब्बत 

ना मिलना 

ना मुस्कुराना 

बस सस्पेंस 

हॉरर 

टेंशन

कहते हैं न

आल इज वेल दैट एंड्स वेल।


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