संस्कार: मैं रोना चाहती थी
संस्कार: मैं रोना चाहती थी
वो करता रहा वार, मेरी आत्मा पर
फिर भी मुस्कुराना मेरी किस्मत है........
उसने जख्मों पे जख्म दिए हैं मुझे
दिल के टुकड़े मेरे कई बार किये
सपने देखे थे मैंने जिसके लिए
उसने नफरत के बोल सिखाये मुझे
मैं जकड़ी रही संस्कारों में
बहु बनके आई, इज्जतदारों में
जीना मुश्किल मेरा, बो करता गया
फिर भी मुस्कुराना मेरी किस्मत है.........
जी भर के रोने को दिल ने कहा
पर जकड़ा मुझे संस्कारों ने
आँख समुन्दर सी मेरी भरी रह गयी
आत्मा अंदर से मर गयी
एक बूँद भी आंसू गिरा ना सकी
घुट घुट के रोने को, मैं मजबूर हुई
माँ ने किस्मत का मुझको दिलासा दिया
संस्कारों का पाठ, फिर सुना दिया
मैं रोना चाहती थी
फिर भी मुस्कुराना मेरी किस्मत है...........
है बहुत ही गिले, जिंदगी से मुझे
सारे रिश्ते नाते मुझी से बने
कहीं बेटी बनी, तो माँ मैं कहीं
बेटी बनके पापा की इज्जत बनी
सारे दर्दो को माँ बनके पी गयी
क्या सारे दर्द बस मेरे लिए l
मैं कहना चाहती थी
फिर भी चुप रहना मेरी किस्मत है
मैं रोना चाहती थी
फिर भी मुस्कुराना मेरी किस्मत है..............
