ग़ुरूर... है उनको किस बात का
ग़ुरूर... है उनको किस बात का
लोग समझते हैं की,
हम जानते नहीं उनको
उन्हें क्या पता की हम,
अच्छे से पहचानते हैं उनको
ख़ूब समझते हैं चालाकियाँ सबकी
बात बस इतनी है की
हम नजर अंदाज करते हैं उनको.....
गुरूर है पता नहीं किस बात का
बो कोशिश करते हैं
हर बार तोड़ने की हमें
हमने तो अब तक
शुरू भी नहीं किया
उन्हें क्या पता हम बख्श देते हैं उनको.........
गर हम समझना छोड़ दे
गर हम जोड़ना छोड़ दे
ऐसे करके तोड़ेंगे उनको
की कोई भी ना जोड़ पायेगा उनको........