मैं हर दिन चोट खा रही हूँ..
मैं हर दिन चोट खा रही हूँ..
मां तुझे पता है,
मैं हर दिन चोट खा रही हूँ
घुट रही हूँ अंदर ही अंदर,
फिर भी मुस्कुरा रही हूँ
मां क्या सच में,
बोझ सिर्फ हम बेटियां ही होते हैं
उस बिगड़े नाबाब का क्या मां
जिसके हाथों तूने सौंप दिया मुझे
माँ पता है, बो हर दिन ताने मारता है
मेरी आत्मा को हर दिन झकझोरता है
मां मैं फिर भी जी रही हूँ
मां मैं हर दिन चोट खा रही हूँ.......
मां मैं हर दिन चोट खा रही हूँ......
कभी कभी मन करता है
चली जाऊं कहीं दूर इस जंजाल से
जहाँ कोई अपना ना मिले
और दूर रहूं सबकी चाल से
मां पता है, मैं ये भी नहीं कर पा रही हूँ
मां मैं हर दिन चोट खा रही हूँ.......
मां मैं हर दिन चोट खा रही हूँ........