मैं इतनी अजीब क्यों हूं....
मैं इतनी अजीब क्यों हूं....
मैं बहुत ही अजीब हूं
बहुत कुछ करना चाहती हूं
पर कर नहीं पाती हूं
बहुत कुछ कहना चाहती हूं
पर कह नहीं पाती हूं
बहुत ज्यादा हंसना चाहती हूं
पर हंस नहीं पाती हूं
पता नहीं मैं ही इतनी अजीब क्यों हूं ,
लोग चाहे कुछ भी कह ले
मैं कुछ कह नहीं पाती
मैं जवाब देना चाहती हूं
पर चुप हो जाती हूं
मेरे मन में इतने सवाल हैं
जैसे अनगिनत तारे आसमान के
पर जवाब में सिर्फ शून्य ही पाती हूं
पता नहीं सिर्फ मेरा जीवन ही ऐसा है
या सबका, यही सोचती हूं
पता नहीं मैं ही इतनी अजीब क्यों हूं
