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रिपुदमन झा "पिनाकी"

Drama Tragedy

4.5  

रिपुदमन झा "पिनाकी"

Drama Tragedy

संबंधों में षड्यंत्र

संबंधों में षड्यंत्र

1 min
803


संबंधों में अब

न वो अपनापन रहा

न लगाव न विश्वास

कैसा विचित्र समय आया है

घोर अंधियारा छाया है

संबंधों की रखवाली कोई नहीं करना चाहता

अपने ही अपनों की नींव खोद रहे हैं

संबंधों की बोटियां गिद्ध सा नोच रहे हैं


परिवारों में टूट है

दूरियां हैं, अविश्वास है

भ्रम, छल-कपट का वास है

संबंधों में समर्पण की कमी है

निस्वार्थ प्रेम का नितांत अभाव है

शायद बदलते समय का प्रभाव है।


षड्यंत्र करने लगे हैं संबंध

आपस में ही आजकल

भरते हैं कान अनर्गल बातों से

डालते हैं द्वेष का विष

एक-दूसरे के मन में

बोते हैं नफ़रत की बेलें

दिल की ज़मीन पर

संबंधों की मिठास को

कड़वाहट में बदल रहे हैं

दूरगामी प्रभावों

और परिणामों से अनभिज्ञ।


हर कोई जतन में है

एक-दूसरे को गिराने की

नीचा दिखाने की

स्वयं को अति श्रेष्ठ बताने की

बड़ों में बड़प्पन नहीं बचा

छोटों में शालीनता और संस्कार गौण है


बुन रहे हैं जाल

अपने ही अपनों के विरुद्ध

रात-दिन करते हैं मंत्रणा

बनाते हैं गुप्त योजनाएं

अपनों से अपने छुप-छुप कर

रचते हैं षड्यंत्र अपनों के विरुद्ध

सभी लोगों में एक-दूसरे को

नोच खसोट कर खाने की होड़ मची है


जीवन को संग्राम समझ

कूटनीतिक चालें चली जा रही हैं।

आज विश्वास भाजक ही

विश्वासघात करने में लगे हैं

एक इच्छित अनिच्छित प्रतिस्पर्धा में लगे हैं।

परिवार के खुशियों की

शवयात्रा निकाली जा रही है

सहोदर ही एक दूसरे की

चिता जला रहे हैं

हंसते-खेलते

खिलखिलाते संबंधों को

तिलांजलि दे रहे हैं।



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