समय
समय
समय कैसा भी हो, बीत ही जाता है
आज भले ही निराशा के अंधेरे हैं
कल उम्मीद की प्रकाश अवश्य होगा।
किसने सोचा था कि ये सब हो जाएगा
पंछी को पिंजरे में कैद करने वाला
यूँ ख़ुद ही के घर में कैद हो जाएगा
कल सुख का जो मौसम लगता था
आज वो दुख लेकर आता है
समय कैसा भी हो, बीत जाता है।
मनुष्य ने रुलाया प्रकृति को कल
आज मनुष्य खुद रो रहा है
अपने प्रियजनों को कंधों पर ढो रहा है
किसने सोचा था कि समय यूँ बदलेगा
और मनुष्य श्वास न ले पाएगा
कल तक रहते थे दूर-दूर रिश्तों से
आज समय ऐसा है कि फोन सभी का आता है
समय कैसा भी हो, बीत ही जाता है।
