डोर से बँधी पतंग
डोर से बँधी पतंग
डोर से बँधी हुई एक पतंग
उड़ जाना चाहती है दूर गगन में
पर बहती हवा का हर झोंका
बदल देता है उसकी दिशा
जानती हैै वो उड़ न सकेगी
गर हवाएँ तेजी से न चलेंगी
प्रतिक्षा है उसे उस माँझे की
जो कर देे उस डोर से स्वतंत्र
कि वो उड़ चलेेेगी कहीं और
कर लेेगी पूर्ण अपना स्वप्न
वो नहीं जानती कि कटी पतंगों
को लूूट लिया जाता है और
बाँध दिया जाता है किसी और से
क्योंकि अकेली पतंग बिन डोर
अस्तित्व विहीन प्रतीत होती है।