STORYMIRROR

Kalpna Yadav

Abstract

4.0  

Kalpna Yadav

Abstract

मैं बदल रही हूँ |

मैं बदल रही हूँ |

1 min
348


मैं बदल रही हूँ

रहती थी पहले शांत सी 

किसी झील की तरह

अब भारी बरसात की 

नदी सी उफन रही हूँ

जी हाँ, मैं बदल रही हूँ।


ईमानदारी का गुण लिए 

अपनी राह पर अटका हुई थी

अब बेईमानों के साथ

सफलता की सीढ़ियाँ चढ़ रही हूँ।


हाँ, अब मैं बदल गई हूँ।

जानती हूँ, ये अच्छा नहीं

पर, ये ज़रूरी हो गया है 

इसलिए मैं बदल गई हूँ।


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Abstract